यह कैसा आया ज़माना !!( हास्य व्यंग्य गीत गजल)
तौबा ! यह कैसा आया है ज़माना,
बहुत मुश्किल है दिल को समझाना।
इंसानी रिश्तों से बढ़कर हो गया है ,
उनकी खुदगर्जी का बढ़ता पैमाना ।
जानवर तो बहुत होंगे इस जहां में
मगर कुत्तों पर हुआ दिल आशिकाना।
कुत्ते भी यह कोई आम नहीं है जनाब!
विदेशी नस्ल के महंगे बिकते सरे आम ।
इंतहा देखिए की घर की सारी कमाई ,
इनके ऐशो इशरत में खर्च होती तमाम ।
जरा इनके ठाठ और शान तो देखिए ,
किसी शहजादे से कम नहीं ताम झाम।
सदियो से पूजनीय गाय की बेकद्री ,
और इन हजरात को मिलता ऐशो आराम ।
भले ही आपको कोई फूटी आंख न सुहाए,
मगर ” लाडले ” के तो बड़े हुए हैं दाम ।
इनको ग़ुसल,खान पान और सैर सपाटा,
सारी खिदमत के लिए हाजिर है गुलाम ।
बूढ़े माता पिता तक को न दें इज्जत भी, चुंकी कुत्तों के हिस्से जो जाता एहतराम।
अब तुम्हें क्या कहें हम ए दुनिया वालो !
इनके लिए होश खो बैठे हो अपने तमाम।
अगर इतना ही रहम ओ करम रखते हो दिल में ,
तो मजलूम / बेसहारा जानवरों के लिए भी रखो न!
तभी तो होगा इंसानियत के फरिश्तों में तुम्हारा नाम ।