यह कहते हुए मुझको गर्व होता है
यह कहते हुए मुझको गर्व होता है,
मेरा सिर गर्व से उन्नत हो जाता है,
गर्व से मेरा सीना फूल जाता है,
और मुझको बड़ा सुकून मिलता है,
क्योंकि मैं इसका अंश जो हूँ।
अक्सर मैंने इसको पढ़ा है,
इसकी कुछ तस्वीरें प्रत्यक्ष भी देखी है,
कौन कहता है कि इसने शरण नहीं दी है ?
क्या साक्ष्य है उनके पास जो अलापते हैं ?
कि यहाँ जिंदगी गुलज़ार नहीं है,
और नहीं मिलता है यहाँ स्नेह और अपनापन।
किसको इसने आबाद नहीं किया है ?
किसको नहीं मिला है इससे मान- सम्मान ?
किसको नहीं दी है इसने हँसी और खुशी ?
और किसको नहीं दी है इसने सुरक्षा ?
मैं यह सब झूठ मानता हूँ।
समुद्रपार के लोग भी ऐसा कहते हैं,
वो भी छोड़कर अपनी जमीं को,
इसकी माटी में बसने का ख्वाब देखते हैं,
क्योंकि वो भी करते हैं इसकी पूजा,
इसकी जमीं को स्वर्ग और देवता मानकर।
क्योंकि यह सुरम्य, सुफला और सुजला जो है,
यह पवित्र, पुण्यधरा और कल्याणकारी जो है,
वसुधैव कुटुम्बकम की यहाँ जो भावना है,
मैं एक भारतीय है और,
इसकी मिट्टी में मैंने जन्म लिया है,
यह कहते हुए मुझको गर्व होता है।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)