यही तो इश्क है पगले
करता है जो उसको याद
सुबह हो या शाम तू पगले
नहीं मालूम तुमको ये
यही तो इश्क है पगले
न आए नींद रातों को
मचलता है दिल पगले
उसे ही चाहे हरपल तू
यही तो इश्क है पगले
महीना हो दिसंबर का
या मौसम बर्फ का पगले
तुम्हें सर्दी छू न पाएगी
यही तो इश्क है पगले
नहीं हो सकता जुबां से गर
इज़हार आंखों से कर पगले
जो आंखों की जुबां समझे
यही तो इश्क है पगले
उसके सिवा न सूझे कुछ
बस याद वही आए पगले
खुली आंखों में सपने हो
यही तो इश्क है पगले
लगती है ये दुनिया जन्नत
और बस वही परी पगले
दिख जाए दुनिया उसमें जब
यही तो इश्क है पगले।