यही जीवन की पूर्णिमा है।
अंतस से जब मिटे बुराई,
ध्येय पर ही दृष्टि जमी हो,
बाधाओं की अग्नि जलाकर,
अपने में ही स्थिर रहकर,
योग प्रयोग करें नित नव,
प्रकृति के आकर्षण बल को,
स्थापित कर लें हम ऐसे,
पूर्ण प्रकाश का उदय हुआ,
यही जीवन की पूर्णिमा है।।1।।
ना ही सोचें मिथ्या बातें,
भूल जायें सब बीती रातें,
अंकुश तो जीवन में आते हैं,
यह सब योग वियोग की बातें हैं,
प्रेरक हैं यह सब जीवन के,
यहाँ कोई नहीं है अपना प्यारे,
संकट में परखो तुम सब को,
अपने पथ को स्वयं बनाओ,
यही जीवन की पूर्णिमा है।
©अभिषेक पाराशर