यही जिंदगी
शीर्षक – यही जिंदगी … ******************** सच तो जीवन है। जीना पड़ता है। बस सोच का फर्क है। न तेरा न मेरा नाम हैं। शारीरिक भूख तो होती हैं। समय के साथ मिट जाती हैं। हम सोचते बस जीवन यही है। मन भावों में चाहत रखते हैं। किस्मत सबकी अपनी सोचते हैं। न कर्म न धर्म बस जिंदगी गुज़र हैं। सच तो कुछ भी नहीं मालूम होता हैं। हां हम सभी समाज और समाजिक हैं। पेट की भूख और संसार के रंग है। बस एक सोच और समझ होती हैं। प्रेम और चाहत हम सभी रखते हैं। धन और फरेब मन में चल रखते हैं। सच तो समय फिसल जाता हैं। बंद मुट्ठी और कुदरत कह जाती हैं। हां सच यही तो बस जिंदगी है। ********************** नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र