मेरी चाहत !
इस सीने में धड़कन बनकर, धड़क रहा दिल जब से है।
अपनी भी हो एक माशूका यही, चाहत मेरी तब से है।।
माना कि हम है एक फौजी, धरम जुदा मेरा सब से है।
अपनी भी हो एक माशूका यही, चाहत मेरी तब से है।।
कुछ अपनी भी रहती इच्छा, नैनो संग पेच लड़ाने की।
चाँदनी रातों में बैठ किसी संग, तारे गिनने गिनाने की।।
प्रेम कथा का बनूं मैं नायक, आस न जाने यह कब से है।।
अपनी भी हो एक माशूका यही, चाहत मेरी तब से है।।
सबके किस्से कथाओं में इक, परियों की रानी रहती है।
पर फौजी करे सिर्फ लड़ाई, सभी यही कहानी कहती है।।
प्रेम छोड़ क्यों सिर्फ शाहदत, कम अपना कौशल कब से है।
अपनी भी हो एक माशूका यही, चाहत मेरी तब से है।।
ख्वाबो में कुछ चित्र गढ़े, कुछ अक्स उकेरें बादलों में।
सांवरी सी हो भले मगर पड़े, डिम्पल उसके गालों में।।
सरल स्वभाव की मितभाषी हो, कामना ऐसी रब से है।
अपनी भी हो एक माशूका यही, चाहत मेरी तब से है।।
चाह यही जल्द छुट्टी आऊँ, बन दूल्हा शादी रचाने जाऊँ।
घोड़ी चढ़ मैं निकलू घर से, बना बाराती तुम्हे बुलाऊँं।।
आना प्रेम से ब्याह में मेरे, आग्रह यही आप सब से है।
अपनी भी हो एक माशूका यही, चाहत मेरी तब से है।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १२/०३/२०२०)