*यहीं रह गई *
आये अंत में मिले धूल में,पर यह धरती यहीं रह गई।
कुछ दिन का आनन्द प्यारे ,बनी इमारत यहीं रह गई।।
बांटने को उत्सुक धरती का आँचल
तने खड़े हो क्यों लिए हाथ में पाटल
संग ले गया कोई आज तक, सोचो
अनगिन चले गए छोड़कर ,पर यह मिटटी यहीं रह गई
आये अंत में———————————————-।-1।
कुल तृष्णा ने सींची है भ्रान्ति
कुरु कुल को ना मिली शान्ति
वे सब के सब यहीं ढेर हो गए
बादल घने युद्ध के आये , मिटटी होके लाल बह गई ।
आये अंत में———————————————–।2।
क्या तूने इसको पला पोषा ?
या इसने तुझको पाला पोषा
खोल पंखुड़ियां मनुज धर्म की
सौगन्ध तुझे बाद आज के ,जो अन्तस् से बात बह गई।
आये अंत में———————————————–।3।
इतना क्यों अंजान बना है ?
इस सृस्टि का वरदान मिला है
अनमोल मिली है लम्बी चौड़ी
यही देखकर क्या आज प्यारे,तेरे मुहं की जीभ लह गई
आये अंत में ———————————————-।4।
बांटना है अगर तो प्यार बाँटिये
मत धागे को तोड़, जोड़ गांठिये
दो दिन की है ,वस भ्रात जिंदगी
मेल जोल से रह ले प्यारे , विदुवानो की पाँति कह गई ।
आये अंत में ———————————————-।5।
माना कि तुम खंड खंड करोगे
फिर आगे गुणन खण्ड करोगे
समझे भागफल क्या आएगा ?
कोटि कोष्ठक रचनी होगी सोच गणित की बुद्धि ढह गई
आये अंत में ———————————————-।6।