#ग़ज़ल-02
मीटर-122-122-122-122
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चले थे सफ़र में इरादा ले घर का
यहाँ घर नहीं पर वहाँ मिल गया है/1
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शराफ़त नहीं ये नज़ाकत सही पर
हमारी तरफ़ आपका दिल गया है/2
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अकेले अकेले हँसे जा रहे हो
लगे पेंच कोई ज़रा हिल गया है/3
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अरे खुदकुशी शौक़ से कौन करता
बुरा वक़्त था ज़िंदगी छल गया है/4
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उदासी पढ़ा कीजिए चेहरे की
ज़ुबां को मिरी दर्द अब सिल गया है/5
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हवाएँ लुभाती मुझे आज ‘प्रीतम’
यहाँ छोड़कर कौन ये गिल गया है/6
–आर.एस.प्रीतम