यशोधरा की व्यथा….
हे तपस्वी तुम कितने बदल गये ?
माना तुम हो ज्ञान के सागर!
पर क्यों तुम मेरे नेह में पिघल गये ?
क्यों ली सप्तपदी मेरे सँग ?
लेना था तुमको ब्रह्मज्ञान
क्यों बहे मेरी नेहा सरिता में
मैने कब तुम्हें पुकारा था ?
मुझसे तुम क्यों उलझ गये?