यमुना की प्रतीक्षा …
किनारे पर खड़ी आंखें बिछाए ,
कब आओगे मेरे मोहन प्यारे ।
चले आओ ना एक बार फिर,
मैं प्रतीक्षा रत हूं दर्शन को तुम्हारे ।
कल्की अवतार में कब आओगे,
यदि आए तो अवश्य आना मेरे तीरे ।
वही नन्हे नन्हे चरण मेरे जल में डालना ,
मैं तेरे चरण पखारूंगी जिन्हें छूकर ,
शीतल होंगे प्राण मेरे ।
या फिर गयुएं चराना ,मधुर बंसी बजाना,
खड़े हो इस कदंब के वृक्ष के सहारे ।
हां ! प्रतीक्षा रत हूं ये सुन्दर दृश्य देखने को ,
की फिर से तुम रास रचाओ राधा और गोपियां संग ,
के धन्य हो जाएं मेरे किनारे ।
तुम राधा को पुकारो , पुनः बंसी बजाकर ,
और प्रेमलाप करो,इसी आशा से ये नयन पंथ निहारें।
वो है तुम्हारी प्रेयसी और मैं तुम्हारी पटरानी ,
तुम्हारी शपथ मुझे डाह नहीं पुकारो चाहे राधे राधे !!
बस मुझे एक बार इतना कह दो ,” मैं हूं संग तुम्हारे” ।
प्रतीक्षा रत हूं पुनः अपने ग्वाल बालों के संग ,
नृत्य करो ,केंदुकेन खेलो मेरे तट के किनारे ।
मेरे कान्हा ! मेरी कामना है ये भी तुम पुनः
केंदुकेन फेंको मेरी सतह पर ।
देखो ना ! प्रदूषण नामक कालिया नाग ने ,
पुनः डेरा डाल लिया भीतर मेरे।
उसे मारकर मुझे मुक्त करो ,
अतिशीघ्र आओ मेरे नाथ !
अपने मिलन का वचन निभाओ ।
बस ! अब और प्रतीक्षा मत करवाओ ,
पैयां पड़ूं मैं तेरे ,
प्रभु ! अब मैं तुम्हारे बिना रह न सकूंगी ,
जब तक न आओगे ,तुम्हारी बाट तकूंगी।
जब तक इस घट में रहेंगे प्राण मेरे ।