यमुना की पुकार
यमुना में उठ रही है ऊंची ऊंची लहरें,
यह बाहें हैं जो सहायता को पुकारें।
इन लहरों में समाई है अतीव करुणा ,
सुनकर दिल में भर आई मेरे करुणा ।
रो रो कर दुहाई दे अपने प्रियतम को ,
याद दिलाने भुला वचन प्रियतम को ।
जो भूल बैठे है उसका अनमोल प्रेम ,
भूले वो अपना साथ कैसा है ये प्रेम ?
द्वापर तक तुम्हारा अच्छा साथ रहा,
परंतु इस कलयुग में क्यों वियोग रहा ।
कान्हा ! कहने को मैं तुम्हारी पटरानी ,
किंतु राजा के बिना भला कैसी रानी ।
तुमने मुझसे नजर क्या फेरी मेरे नाथ,
तेरा संग क्या छूटा मैं हो गई अनाथ ।
इन मानवों के रचाए घोर कलयुग ने ,
मुझसे मेरी पवित्रता छीनी इन दुष्टों ने।
मैं, मेरी गंगा और अन्य पावन नदियां,
मानवों की सताई हुई मेरी ये सखियां ।
गीता में वचन दिया अवतरित होने का,
अधर्म का नाश करने हेतु पुनर्जन्म का ।
तुम आओगे तो धरती को शांति मिलेगी ,
इसके संग मुझे भी सुख शांति मिलेगी ।
बरसों से तेरी कालिंदी तेरी राह देखें प्रभु ! ,
कब आओगे मेरे तट पर पुनः मेरे प्रभु !
कालिया मर्दन कर तुमने मेरा उद्धार किया,
अब वही कालिया फिर रूप बदल कर आया।
इस प्रदूषण नामक कालिया से मुझे बचाओ ,
अति शीघ्र आओ कान्हा मुझे मानव से बचाओ।