यमराज हार गया
संसार का शाश्वत सत्य है:
जन्म लिया है जिसने भी ,
होगा मारना कभी न कभी ,
छूट न सकता यहां कोई भी ।
कब लेना है जन्म किसे ?
कब आयेगी मौत किसे ?
कब निकलेगी उसकी आत्मा ?
जान पाया न अबतक कोई भी ।
सबको अपनी आयु जीना है,
असमय कोई न मर सकता है,
“मरण अधिकारी ” यमराज को भी
मिलती है हार, कभी न कभी ।
हार गया था वह सावित्री से,
गजराज से भी वह हारा था,
एक बार नही, कई बार हारा था
हार गया वह उत्तरकाशी में भी ।
41आत्माओं को फंसाकर सुरंग में,
फंस गए थे वे वहां स्वयं भी,
गिरा हुआ सुरंग का मलबा ;
निकलकर भागने नहीं दिया उसे भी ।
देश से, विदेश से आए अभियंता
कुशल – कार्यकर्ता विशेषज्ञ नियंता
लेकर अद्यतन नई -नई तकनीक
कर गए काम माउस माइनर्स भी ।
पहाड़ के देवता भाईखू नाथ ने
द्वार पर विराजती मां काली ने
कितना समझाया और बुझाया
नहीं सुना किसी की एक भी ।
आए देवी- देवता देवलोक से
धरती पर देव – दीपावली देखने
सुनकर सुरंग की दर्दनाक घटना
आश्चर्य चकित हुए थे वे भी ।
“यमराज “! यह क्या कर डाला तुमने
छल कर डाला इतने निश्छल से
निर्माता था, कुशल कारीगर था
निर्णायक कैसे रह सकते हो आगे भी ।
अभी काम समाप्त नहीं हुआ था,
अभी काम बहुत ही बांकी था,
इन्हें ही सुंदर उपयोगी बनाना था ,
नहीं निभाया अपनी जिम्मेदारी भी ।
17 दिन 16 रातें बीत गई है
न सूरज देखें हैं इन्होंने अबतक,
न चांद को देखें हैं इन्होंने अबतक,
किं कर्तव्य विमुड हो तुम अब भी ।
27 नवम्बर के दिन संध्या के समय
निकले सभी मजदूर बारी बारी से
स्वस्थ सकुशल चिंता रहित से
भीतर रहा न अब कोई भी ।
वह अमावस्या का काला दिन था
आज पूनम के बाद का सुखद दिन था
वह पारंपरिक दीपावली का दिन था
हर्षित हो मनाया दीपावली देश आज भी ।
एक बार ही मिलती है यहां मौत,
बार -बार नही मिलती है यहां मौत,
दोबारा जिंदगी भी कहां मिलती है?
” भूल -सुधार ” के बाद मिलती है जिंदगी भी ।
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रचना- घनश्याम पोद्दार
मुंगेर