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22 Apr 2023 · 2 min read

यमराज की धमकी

हास्य व्यंग्य
यमराज की धमकी
**************
कल रात की एक बड़ी घटना के बाद
यमराज भागता हुआ मेरे पास आया
उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं,
मैंने जब कारण पूछा तब उसने
पहले तो घटना के बारे में बताया
फिर अपने डर को विस्तार से समझाया।
प्रभु ध्यान से मेरी बात सुनिए
मेरा संशय दूर कीजिए,
इस धरती पर एक आप ही हैं
जिस पर मैं भरोसा करता हूं
अपने सुखदुख बिना संकोच बांटता हूं।
मगर आज मैं बहुत व्यथित हूं
अब तो धरती पर कोई भी सुरक्षित नहीं है
जो जितनी सुरक्षा के बीच है
वो उतना ही असुरक्षित है।
जब इतनी महान आत्माएं असुरक्षित हैं
तब आम और बदनाम आत्माएं भला कब सुरक्षित हैं?
लोग मनमानी करते हैं करते रहें
अपराध पर अपराध करते रहें, पर मुझे तो बख्श दें,
मेरे काम का बोझ और न बढ़ाएं
अपनी कारगुज़ारियों में मुझे न घसीटें
मुझे भी तो जवाब देना पड़ता है
आत्माओं के रहने का इंतजाम भी करना पड़ता है।
पहले से ही बहुत सी आत्माएं भटक रही हैं
कुछ और बेचारी आत्माओं को अब और तो न भटकाओ,
नियम कानून संविधान से दुनिया समाज चलाएं
अपने और कानून के चक्रव्यूह में मुझे न फसाएं।
थाना पुलिस कानून, कोर्ट कचहरी जांच के चक्कर में
मुझ कमजोर को न फसाएं
मेरे काम में कोई न टांग अड़ाएं,
मैं यमराज हूं यमराज ही रहने दें
माफिया, अपराधी बनाने का चक्रव्यूह न रचें
मुझे भी अपराध के दलदल में न ढकेलें
वरना मैं भी आवाज उठाऊंगा
धरने परशांति से बैठ जाऊंगा
बाबा के दरबार में न्याय की अर्जी लगाऊंगा
मौन न रह पाऊंगा,
विवश मत कीजिए वरना रंग में आ जाऊँगा
मैं भी अपनी औकात दिखाऊंगा
आप सबको मजा चखाऊंगा
और एक भी आत्मा को नहीं ले जाउंगा।
आप सबको तिगुनी का नाच नचाऊंगा
यमराज की माया सबको दिखाऊंगा।
ये बात मेरी ओर से आप अपनी दुनिया को समझा दें
होने वाली अव्यवस्था का दोषी कल मुझे न ठहरा दें।
अपने कर्मों का दोष मेरे सिर न मढ़ दें
अपने रंग में रंगने की ग़लती न कर दें,
वरना बहुत पछताएंगे

मरने के बाद आप सबकी आत्माएं
स्वर्ग क्या नर्क भी नहीं देख पायेंगी
फिर आत्माओं के लिए
क्या नई दुनिया आप सब बनाएंगे?
या दुनिया चलाने के लिए लोकतंत्र अपनाएंगे
और चुनाव करायेंगे,
उसमें भी गंदी राजनीति की बदबू फैलाएंगे?
और मेरे खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर
मेरी धरती यात्रा पर प्रतिबंध लगायेंगे।
अपनी बात कहते कहते
यमराज ने जैसे मुझे ही धमका दिया
जीते जी मुझे ही नहीं मेरी
मेरी आत्मा को भी हिलाकर रख दिया
भीषण गर्मी में भी कंपकंपा दिया।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित

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