# यदि . . . !
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★ #यदि . . . ! ★
बुलाओ तो पुष्पक को तुमको ले उड़े
ढूँढो धरा रावण के जहाँ पाँव नहीं पड़े
क्षेत्रजायीहित बांध दिया सागर तुमने
हिंदुआनियों के पेट क्या बल नहीं पड़े
घिरी लुटी पिटी मरी-सी सिसकियाँ
दु:ख बेटियों के हाय प्राणांत से बड़े
आये गये राजा बहुत रंग-रंग के
सबके सब औंधे सब चीकने घड़े
उगा नया सूरज आज आग उगलता
कृपाण म्यान मूठ हाथ मुख से जो लड़े
म्लेच्छकर्मक्षेत्र हुआ भारत विशाल है
तर्क पुरोहितों के सब वही गले सड़े
चतुर्युगी के बाद आना तू मत आना
घाव कलिकाल के भुवन से भी बड़े
धरा स्मृद्ध हुई निर्धन प्रजा है आज
मोतियों के सागर लुट गये खड़े खड़े
बाँझ नहीं हुई धरती अभी हिन्द की
वीर महावीर बहुतेरे वज्र-से कड़े
जाम्बवान मिल जाये आज यदि राम
गिरि महेन्द्र पल में हनुमंत जा चढ़े
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२