यदि मेरी पीड़ा पढ़ पाती
यदि मेरी पीड़ा पढ़ पाती
तो निश्चय ये हाल न होता ।
मन जितना बेहाल अभी है
उतना तो बेहाल न होता ।
तुमने अब तक मौन पढ़े सब
झ्न आंखो के झ्न आहों के
किन्तु आज क्यों पढ न पाई
लिखे हर्फ भी इन हाथों के ?
धुंध की कैसी परत चढ़ाई
समय ने हम दोनों के बीच ।
पास सदा ही रहे तुम्हारे
किन्तु तुम्हें न हुए प्रतीत ।
बीते इन सब दिन पल छिन में
कितनी पीड़ा पाई है ?
घूंट आंसुओं के ही पीकर
मैंने प्यास बुझाई है ।
तुम्हें हुआ आघात बहुत
पर चोट इधर भी आई है ।
तुम पर है जो बीती अब तक
की मैंने भी भरपाई है।