यदि चाह रहा जीवन सुखकर
यह सारा जग ही है नश्वर
फिर क्यों करता है आडम्बर
पूरे कर कर्म सभी अपने
निष्काम कर्म मे रत रहकर
सबकुछ माया परमेश्वर की
तू राग द्वेष से उठ ऊपर
है नित्य अनित्य यहाँ पर क्या
पहचानों सावधान होकर
है सदा अनर्थक अर्थ यहाँ
ना कोई सुखी इसे पाकर
जो रहता काम-भोग मे रत
रोगी बनकर रहता वह नर
तू सदा सदा भज मधूसूदन
यदि चाह रहा जीवन सुखकर
?मधुसूदन दीक्षित?