यथा नाम तथा न गुणा
नाम है दयाराम
करते शिकार हैं
नाम है लक्ष्मीदेव
लेते उधार हैं…
कहने को ब्रम्हचारी
रोज जाते “बार” हैं
बनने को पतिब्रता
ब्वॉयफ्रेंड हजार हैं
©”अमित”
यह कविता मैंने एक घटना से प्रभावित होकर 2006 को लिखी थी।
ये कविता कई बार प्रकाशित हो चुकी है। फिर भी केवल पाठकों के पढ़ने के उद्देश्य से पोस्ट कर रहा हूँ।