यथार्थ
कल्पना लोक में विचरण कितना
सुखद होता है ,
परंतु उस व्योम के बादल छंटने पर यथार्थ का
अनुभव दुःखद होता है,
हम समझ नही पाते सत्य सदैव कड़वा होता है ,
झूठ भावित चाशनी में डूबा हुआ मीठा लगता है ,
पूर्वाग्रह ,पूर्वानुमान एवं कल्पित धारणा के
आभासी मंच पर निर्मित काल्पनिक संसार
अस्थायी होता है ,
जबकि, प्रामाणिक तथ्यों एवं तर्कों पर
आधारित वास्तविकता के धरातल पर यथार्थ
स्थायी होता है,
अनुभव एवं प्रज्ञाशीलता की कसौटी पर
सत्यता का आकलन
यथार्थ को सिद्ध करता है ,
जबकि भावनाओं ,अंधविश्वासों ,
अर्धज्ञान , एवं अर्धसत्य पर आधारित आकलन सदैव असत्य सिद्ध होता है ।
सत्य का पथ दुष्कर कंटकों से भरा
संघर्षपूर्ण दुःखद अवश्य होता है ,
परंतु आत्मविश्वास एवं धैर्य से परिपूर्ण
पथिक के लिए अंत में
ग्लानिरहित संतोषप्रद होता है।