यथार्थ
हुस्न ढला, यौवन ढला , फिर भी बचा गुरुर ।
नशा ढला , मस्ती ढली , बाकी किन्तु सुरूर।।
बाकी किन्तु सुरूर , साथ में निद्रा गहरी ।
माया के वश जीव , दिखे हर वस्तु सुनहरी ।
कह पाण्डे कविराय , बात इक बहुत जरूरी।
दस्तक देती उम्र , छोड़ सब द्वंद फितूरी।।