यथार्था,,, दर्पणता,,, सरलता।
यथार्था,,,
वास्तिवक्ता प्रदान करती है!!!
दर्पणता,,,
पारदर्शिता प्रदान करती है!!!
सरलता,,,
निष्पक्षिता प्रदान करती है!!!
फिर क्यों ना मानव तू इनका,
अनुशरण करता है!!!
क्यों ना इन गुणों को,
तू धारण करता है!!!
सर्वदा व्यभिचारिता,
दुष्टता में लीन विचरता रहता है!!!
कहते है कलयुग आ गया है,
नीचता आ गई है!!!
युग तो युग ही रहते है,,,
बस नाम बदल जाते है,,,
हां इस कलयुग में हृदयों में,,,
संकिर्णता आ गई है!!!
प्रकृति को देख मानव,
आदि अनादि काल से!!!
कभी परिवर्तन हुआ,
इसके स्वरूप आकार में!!!
कल भी चंद्र सूर्य दिन रात्रि थे!!!
आज भी चंद्र सूर्य दिन रात्रि है!!!
परंतु मानव तू इसको भी,,,
परिवर्तित करना चाह रहा है!!!
तू इसकी सुंदरता पर सुबह शाम,,,
बस घाव पर घाव दे रहा है!!!
परंतु मानव ये प्रकृति ईश्वर है,
ये ना कभी परिवर्तित होगी!!!
छेड़कर इसको तू अपने कृत्यों से,
केवल अपना काल बुला रहा है!!!
प्रत्येक क्रिया के उपरांत,
प्रतिक्रिया होती है!!!
प्रत्येक कार्य की,
शुद्ध प्रक्रिया होती है!!!
अंधेरो को हटाने को,
दीपक प्रज्वलित होता है!!!
दुष्टों को मिटाने को,,,
ईश्वर अवतरित होता है!!!
हे मानव प्रकृति के,
विपरीत मत जा!!!
तेरी प्रत्येक कष्टों का निवारण,
इसके पास है तू इसके पास आ!!!
प्रकृति से प्रेम कर,
मानव तेरा कल्याण होगा!!!
तू सदा मुस्कुराएगा,
सोच कभी एकांत में,
इन सबका कोई भी कारण होगा,,,
परंतु प्राकृति से ही इनका निवारण होगा!!!
ताज मोहम्मद
लखनऊ