Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Mar 2017 · 5 min read

यकीऩ मानिए, आपके शब्द आपको महान बना देंगे

यह कोई नई बात नही है कि शब्दों में अथाह ऊर्जा होती है. गर हम गौर करें तो पाएगें कि हमारा सम्पूर्ण जीवन ही उस तरफ प्रवाहित होता है, जिस तरफ की अधिक ऊर्जा हमारे अन्दर सन्चित होती है. हाँ यह जरूर है कि वह सकारात्मक ऊर्जा भी हो सकती है और नकारात्मक ऊर्जा भी. यदि हमारे अन्दर सकारात्मक ऊर्जा अधिक है तो हम स्वतः हर रोज कुछ न कुछ नया सीखते समझते हुए आगे बढ़ते जाते हैं और इसके विपरीत यदि हमारे अन्दर नकारात्मक ऊर्जा अधिक है तो हम दिन प्रतिदिन वक्त की उठा-पटक से परेशान होकर अवनति की ओर बढ़ते जाते हैं. वास्तविकता तो यह है कि हम अधिकतर लोग इस मनोवैज्ञानिक सच को भलीभाँति समझ ही नही पातें हैं और सिर्फ अपनी किस्मत को कोसते हुए जिन्दगी को जैसे तैसे व्यतीत करते रहते हैं.

अच्छा, व्यवहारिक तौर पर जरा विचारिए. यह शब्द ही है जो जोड़ भी सकता है और तोड़ भी, अपना भी बना सकता है और अपनों को दूर भी कर सकता है, बहुत कुछ दिला भी सकता है और गवाँ भी सकता है. परन्तु एक अहम सवाल यह है कि ये शब्द आते कहाँ से हैं ? सवाल बिल्कुल वाज़िब है. आप शायद यह महसूस किए होंगे कि जैसा हमारा अन्तःकरण होता है ठीक वैसा ही हम बाह्य आचरण भी करते हैं. यानी हम सीधे तौर पर यह कहें कि हमारे शब्द हमारे अन्तःकरण की ही अभिव्यक्ति हैं. सन्त कबीर दास जी ने बिल्कुल ठीक कहा था – एक शब्द सुखरास है, एक शब्द दुखरास. एक शब्द बन्धन करै, एक करै गलफाँस. यानी आपके शब्द आपको सुख, दुःख, बन्धन और मुक्ति सब कुछ दिला सकते हैं.

शब्दों के सम्बंध में कई महान विचारकों के मत् निम्न है-
1- कन्फ्यूशियस : शब्दों को नाप तौल कर बोलें, जिससे तुम्हारी सज्जनता टपके.
2- ऋषि नैषध : मितं च सार वाचो हि वाग्मिता, अर्थात् थोड़ा और सारयुक्त बोलना ही पाण्ड़ित्य है.
3- जे कृष्णमूर्ति : कम बोलो, तब बोलो जब यह विश्वास हो जाए कि जो बोलने जा रहे हो, उससे सत्य, न्याय और नम्रता का नाश नही होगा.
4- संत तिरूवल्लुवर : जो लोग बिना सोचे विचारे बोलते है, वे उस मूर्ख व्यक्ति की तरह होते हैं, जो फलों से लदे वृक्ष से पके फलों को छोड़कर कच्चे फलों को तोड़ते रहते हैं.
5- आचार्य चाणक्य : वाणी की पवित्रता ही सच्चा धर्म है.

जरा गौर कीजिए, श्री कृष्ण ने महाभारत में बिना अस्त्र-शस्त्र लिए ही अपने शब्दों के बल पर पूरे युद्ध को अपने हिसाब से चलाते गए. इतना ही नहीं, हम यह कह सकते हैं कि महाभारत का युद्ध ही पूर्णतया शब्दों पर केन्द्रित था. गर श्री कृष्ण जी ने अपने शब्द ऊर्जा का प्रवाह इस प्रकार न किया होता तो रणभूमि में होकर भी अर्जुन शायद अपना अस्त्र शस्त्र रखकर मैदान छोड़कर हट जाते. जब एक युद्ध में शब्दों की इतनी बड़ी महत्ता हो सकती है तो हमारे व्यक्तिगत जीवन में निश्चित रूप से शब्दों का बहुत बड़ा योगदान होता है, बस इसे समझने की आवश्यकता है.

विशेष ध्यातव्य है कि जीवन का एक चक्र होता है. सकारात्मकता हमें अग्रसित करती है और साथ ही साथ सबको आकर्षित भी करती है. सकारात्मक शब्द, सकारात्मक विचारों से उत्पन्न होते हैं. सकारात्मक विचार हमारे सकारात्मक वातावरण और संस्कार से मिलते हैं. सकारात्मक वातावरण हमारे सत्कर्मों से बनते हैं. शब्द ही सत्कर्म की प्रेरणा होते हैं. कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि अपनी एक नई दुनिया बनाइए, उसी में व्यस्त रहिए, मस्त रहिए, अच्छे बुरे रहनुमा तमाम मिलते जाएगें, कारवाँ बढ़ता जाएगा. अन्ततः आप एक महानता के पथिक बन जाएगें और आपके पद्चिन्हों का दुनियाँ अनुशरण करेगी.

खैर यह जरूर है कि आज की आपाधापी भरी जिन्दगी में हमें संयमित एवं सकारात्मक वातावरण रखना थोड़ा मुस्किल सा हो गया है. अत्याधुनिकता के चलन में जहाँ देखो वहाँ अश्लीलता, फूहड़पन, द्विअर्थी संवाद और बेशर्में लोगों का कुनबा दिखाई देता है. पर क्या यह सच नही कि ऐसे लोग कहीं न कहीं मानसिक अस्थिरता एवं अशान्ति में जी रहे हैं ?. मै यह बिल्कुल नही कह रही हूँ कि आप आधुनिकता को मत अपनाइए, अपनाइए पर जरा सम्भल कर, आधुनिकता के दलदल में कहीं आपके पैर फिसल न जाए, जिससे आप दुबारा सम्भलने के काबिल ही न रह जाएँ. अच्छाइयों का आत्मसात् कीजिए, मानव हित में कार्य कीजिए, सतत् चलते जाइए. सुशब्दों के गीत गाते जाइए, यही एक अच्छा इंसान बनने का सूत्र भी है.

गर हम गौर करें तो शब्दों की ऊर्जा और महानता को आसानी से समझ सकते हैं. दुनियाँ के तकरीबन प्रत्येक धर्म भिन्न भिन्न भाषाओं में कुछ न कुछ मंत्र संजोये हुए हैं. शब्दों के संयोग से बना मंत्र अपने अन्दर अथाह ऊर्जा संचित किए रहता है, यानी जब उनका उच्चारण किया जाता है तब उनसे एक सकारात्मक ऊर्जा निकलती है जोकि किए जा रहे निमित्त संकल्प को लाभ पहुँचाती है. आपके दिमाक में यह प्रश्न भी उठ रहा होगा कि यदि हम मंत्रों के शब्दों में बदलाव या उलटफेर कर दें तो क्या होगा ?. शंका बिल्कुल वाजिब़ है. एक बात तो यह साफ है कि दुनियाँ के प्रत्येक जड़ चेतन स्वयं में अद्वितीय हैं, यानी उनके जैसा दूसरा कोई नहीं है. सबकी अपनी अपनी महत्ता है. ठीक इसी प्रकार शब्द भी अपने अन्दर अद्वितीय ऊर्जा का भण्ड़ार रखते हैं. यदि आप मंत्रों के शब्दों में बदलाव या उलटफेर कर देंगे तो निश्चित रूप से उसकी ऊर्जा में बदलाव आ जाएगा.

यकीनन् यह हमें मानना ही होगा कि हम सब कुछ विशेष कार्य के निमित्त जन्में हैं. जीवन को व्यसनों, कुविचारों और अन्धकार में बिताने से तो ठीक ही है कि अपने मनो-मस्तिष्क एवं शब्दों को पवित्र रखें. हाँ कुछ लोग आज यह जरूर बोलते हैं कि अब इमानदारी का जमाना नहीं रहा. वह शायद आज यह भूल चुके हैं कि दुनियाँ को चलाने वाला सर्वशक्तिमान पहले भी वही था और आज भी वही है. आप गलतफहमियों में मत पड़िए. अपने शब्दों को तराशिए, तोलिए फिर बोलिए. परिणाम आपको स्वतः दिख जाएगा. वह पल दूर नहीं, जब आप महानता के मुसाफिर बन जाएंगें. बस इतना जरूर कीजिए कि आप महानता को धन, सम्पत्ति, वैभव या यश से मत आकिए. महानता का सही मतलब तो यह है कि आपकी अपनी एक दुनियाँ होगी, उस दुनियाँ के आप ही पथ प्रदर्शक होंगे, आपके पद्चिन्हों पर चलने वाले लोगों की एक लम्बी फेहरिस्त होगी. आप नेक काम करते जाएंगें और सत्कर्मों का कारवाँ आगे बढ़ता जाएगा. यही सच्ची महानता होगी. इसलिए आप शब्दों की महत्ता समझकर उसको तोलिए, मोलिए फिर बोलिए.

Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 2 Comments · 785 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
4426.*पूर्णिका*
4426.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बुरा ख्वाबों में भी जिसके लिए सोचा नहीं हमने
बुरा ख्वाबों में भी जिसके लिए सोचा नहीं हमने
Shweta Soni
■एक मात्रा का अंतर■
■एक मात्रा का अंतर■
*प्रणय*
वोट डालने जाएंगे
वोट डालने जाएंगे
Dr. Reetesh Kumar Khare डॉ रीतेश कुमार खरे
Someone Special
Someone Special
Ram Babu Mandal
एक लंबी रात
एक लंबी रात
हिमांशु Kulshrestha
शाख़ ए गुल छेड़ कर तुम, चल दिए हो फिर कहां  ,
शाख़ ए गुल छेड़ कर तुम, चल दिए हो फिर कहां ,
Neelofar Khan
आपस में अब द्वंद है, मिलते नहीं स्वभाव।
आपस में अब द्वंद है, मिलते नहीं स्वभाव।
Manoj Mahato
उद्देश और लक्ष्य की परिकल्पना मनुष्य स्वयं करता है और उस लक्
उद्देश और लक्ष्य की परिकल्पना मनुष्य स्वयं करता है और उस लक्
DrLakshman Jha Parimal
आक्रोश - कहानी
आक्रोश - कहानी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
' रहब हम मिथिलादेश में '
' रहब हम मिथिलादेश में '
मनोज कर्ण
We all have our own unique paths,
We all have our own unique paths,
पूर्वार्थ
इश्क अमीरों का!
इश्क अमीरों का!
Sanjay ' शून्य'
* चली रे चली *
* चली रे चली *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
जिस रिश्ते में
जिस रिश्ते में
Chitra Bisht
सुख समृद्धि शांति का,उत्तम मिले मुकाम
सुख समृद्धि शांति का,उत्तम मिले मुकाम
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
सम्मान सी दुनिया में कोई चीज नहीं है,
सम्मान सी दुनिया में कोई चीज नहीं है,
Anamika Tiwari 'annpurna '
ତୁମ ର ହସ
ତୁମ ର ହସ
Otteri Selvakumar
बच्चो की कविता -गधा बड़ा भोला
बच्चो की कविता -गधा बड़ा भोला
अमित
असत्य पर सत्य की जीत तभी होगी जब
असत्य पर सत्य की जीत तभी होगी जब
Ranjeet kumar patre
आपसी की दूरियों से गम के पल आ जाएंगे।
आपसी की दूरियों से गम के पल आ जाएंगे।
सत्य कुमार प्रेमी
— कैसा बुजुर्ग —
— कैसा बुजुर्ग —
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
दोगलापन
दोगलापन
Mamta Singh Devaa
मोहब्बत में जीत कहां मिलती है,
मोहब्बत में जीत कहां मिलती है,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है दोस्तों यहां पर,
शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है दोस्तों यहां पर,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"मंजिल"
Dr. Kishan tandon kranti
*सॉंसों में जिसके बसे, दशरथनंदन राम (पॉंच दोहे)*
*सॉंसों में जिसके बसे, दशरथनंदन राम (पॉंच दोहे)*
Ravi Prakash
भूल भूल हुए बैचैन
भूल भूल हुए बैचैन
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है और कन्य
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है और कन्य
Shashi kala vyas
**जिंदगी की ना टूटे लड़ी**
**जिंदगी की ना टूटे लड़ी**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
Loading...