यकीनन बहुत भाव खाने लगे है
यकीनन बहुत भाव खाने लगे हैं
जिन्हें आजकल हम मनाने लगे हैं
जिन्हें दिल दिया चैन पाने की ख़ातिर
वही अब मुसलसल सताने लगे हैं
समुंदर के माफिक मुझे वे रुलाकर
मुहब्बत की रस्में निभाने लगे हैं
मुझे बेवफ़ाई का इल्ज़ाम देकर
किसी और से दिल लगाने लगे हैं
किया प्यार ‘आकाश’ दोनों ने लेकिन
मैं तड़पा हूँ वे मुस्कुराने लगे हैं
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 11/11/2021