यकीं नही होता
गली ये मोहबत की जान पतली है
चलें जो साथ दोनों इश्क़ असली है
दवा मिलती नही शक की यहाँ मेरे
इसी खतिर दुकानें तुम ने बदली है
समंदर हो गया खुश देख ये मंजर
रही जिंदा बिना पानी केे मछली है
कहाँ तू खो गया मिल क्यों नही जाता
तुझे तो ढूंढने अब रूह निकली है
हमेशा बोलती वो मोम जैसी हूँ
दुरी की आग से भी न पिघली है