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29 Nov 2016 · 1 min read

यकीं उसकी उल्फ़त का मुझे आने तो दे

यकीं उसकी उल्फ़त का मुझे आने तो दे
हँस भी लेंगे पहले मुस्कुराने तो दे

तीर क्या नज़रों से तलवार चला जानां
जहां तू नहीं है जगह वो बताने तो दे

सूरज ढल जाने का मतलब अंधेरा नहीं
चाँद निकलने दे तारे झिलमिलाने तो दे

अजी भूख की छोडो पहले प्यास की सुनो
ज़ख़्म इन हाथ के छालों को खाने तो दे

बदल डाले कब सूरत आती जाती आँधियाँ
अदाएँ ज़रा बहारों को दिखाने तो दे

तरकश ही खाली है ना तज़ुर्बे में कमी
लगाने हैं तीर जहाँ वो निशाने तो दे

ए नये ज़माने नया सबक भी सीख लूंगी
याद हैं जो पहले से ‘सरु’को भुलाने तो दे

2 Comments · 264 Views
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