मज़बूरी जीवन दूरी न बन जाए
?मज़बूरी जीवन दूरी न बन जाए?
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दर – दर भटकें ठोकर खाते , बहुत बुरी है लाचारी।
रोजगार ना घर ही मिलता , संकट जीवन में भारी।
आँसू आहें देख सकें ना , देती खौफ़ महामारी।
ऊपर वाला जाने अब तो , कब महकेगी फुलवारी।
हँसना रोना भी भूल गए , मंज़िल को बस पाना है।
सही सलामत पहुंच जाएँ , इतना मन में ठाना है।
साथ प्रशासन का मिल जाए , समझें ये नज़राना है।
भीड़ हमारी ये ठीक नहीं , ग़लती का अफ़साना है।
मज़बूरी ही ठीक सही पर , नियमों को समझो प्यारे।
आदेशों का पालन करना , है हित में आज हमारे।
लापरवाही ठीक नहीं है , देखोगे दिन में तारे।
समझदार बन जाओ अब तो , समझाते मिलके सारे।
राशन पानी दें सरकारें , क्यों फिरते मारे – मारे?
संकट का मंज़र टल जाता , फिर मिल जाते घर द्वारे।
भूल बड़ी है जो कर बैठे , हो अब तुम राम सहारे।
सामाजिक दूरी बनी रहे , समझो बस नेक इशारे।
कोरोना अगर मिटाना है , घर सुरक्षित ठिकाना है।
पहले जीवन बच जाए ये , फिर तो रोज कमाना है।
सावधान रहना प्रतिपल में , खुद समझो समझाना है।
जीवन सबका सुंदर होता , सुंदर यह बच पाना है।
(ताटंक छंद)
?आर.एस.प्रीतम?