म्हारो गांव अर देस
म्हारी मायण धरा जिकि माटै रैवता रैवता आज इतरा साल होग्या,
जै मनै आपणा आँचल मे इतरा साल छिपायोडो राख्यो।
जिण धरती री माटी म रमता रमता म अतरा मोटियार हो गया,
उण धरती रो म्हारे माटै घणो ऋण बाकी छे।
उणी धरती री याद म लिखित एक रचना
या रचना बनेड़ा री यादा सू जुडीयोडी है
बनेडा रो आँगण, जो मनै चीजा प्रदान करीयो उण री छवि दिखायोडी ह
आ धरती मोरया मोर री, आ धरती मीठे इमरतीयां री,
ई धरती रो किलो ऊँचो, आ वात कवै कूचो कूचो।
आ तो राजपुर(बनेड़ा) कहावै, ई पै मेघ बरसणे आवे,
ई रो जस बनेड़ा वासी गावे, धरती मोरया री॥टेर॥
माटी बालपणा न महकावै, डूंगर दोस्ता सूं,
मिलावे,
हवा जवाणी आळम दिखावे, धरती मोरया री।
प्रेरणा इण सूं मल जावे, रचना स्वत: ही बण जावे,
रचनाकार मानै बणावे, धरती मोरया री॥1॥
इण सू बालपणा रो आणंद लूटो, ओ तो जवाणी रो ह खूटो,
इण रो यादा रो ह खूटो, धरती मोरया री।
जिण पै दोस्तां री सैनाणी, बनेडा कद इण सू अनजाणी,
घाटी रा ड़ूंगरा री कहाणी, धरती मोरया री॥2॥
इण ने छोड़ कठै नी जावा, ई पै जिंदगी भर रह पावा,
इण पै घणा त्यौहार मणावा, धरती मोरया री।
इण री मर्यादा ने सदा निभावा, इण रे स्वाभिमान ने नही लजावा,
इण ने तन-मन-धन भेट कर जावा, धरती मोरया री॥3॥
राज रा थारो
लक्की सिंह चौहान
ठि.- बनेड़ा