मौसम
मौसम
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चले जो पुरवईयाँ ,
अंग -अंग सिहर जाए
काम -धाम छोड़ के ,
गोरी खड़ी इतराए
मौसम सारे बारि -बारि
आए
पिया का संदेशा दे
दूर -दूर भागि जाए
गर्मी पड़े जब
स्वेद उपरि से नीचौ बहे
जाए
दग्ध बदन ऐसो हो जाए
जैसे फीवर कूद
मचाए
इन्तजार रहे कूलर ,पंखे को
प्राण जा इन्हीं समाए
सौतन बन गई बिजुलि
बारि-बारि आए और जाए
बीज़ना खड़ा खड़ा कहे
अब तो प्यारे मुझको
बुलाए
हाल -बेहाल हुआ है
जन -मन अकुलाए
ऐसे में तो याद चौमासा आए
मानसून खड़े है टेक छड़ी
हाय -हाय है रही है
अब तो कोई बारिस
लाए
~~डॉ मधु त्रिवेदी ~~