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6 Apr 2024 · 1 min read

मौसम

मैने सबर का मीठा स्वाद चखा है!
वक़्त बेवक्त जो साथ दे,वो सखा है!!

बंद कमरे में खुली हवा,बात बेमानी है!
खुल के जीने में मजा जिंदगी दिखा है!!

होता है नाज़ हमको बदली फ़िज़ाओ पर!
क्योंकि उन फ़िज़ाओं पर नाम मेरा लिखा है!!

नई कोपलों को भी एक अरसे बाद बदलनl है!
उमर के तकाज़े पे क्यों गम,नई कोपल दिखा है!!

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट कवि पत्रकार सिकंदरा आगरा -282007
मो: 9412443093

Language: Hindi
37 Views
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