मौसम बसंती आ गया
सज गयी है ये धरा मौसम बसंती आ गया
बाग वन सुरभित हुआ मौसम बसंती आ गया
पीत पट ओढे धरा सोलहो सिंगार कर
लग रही है अप्सरा मौसम बसंती आ गया
मोर कोयल बाग में फिर कूजने गाने लगे
हर दिशा उत्सव हुआ मौसम बसंती आ गया
डालियाँ किसलित हुईं हैं झूमती है हर कली
ठूँठ नव सृजित हुआ मौसम बसंती आ गया
फिर महक उट्ठी गली अमराइयों की बाग में
और महुआ रस भरा मौसम बसंती आ गया
ओढ़कर धानी चुनरिया ये धरा दुल्हन बनी
क्या निराली है छटा मौसम बसंती आ गया
कोयलें भौरों की मीठी तान “प्रीतम” मन हरे
जैसे जादू चल रहा मौसम बसंती आ गया
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)