मौसम खिला हैं, बरसात आओ न
मौसम खिला हैं, बरसात आओ न
तन्हाइयों से भरी जिंदगी बहलाओ न
महकाती जीवन लाओ न
मजबूरीया छिपा घटायों पर,
खिलखिलाते मौसम बनाओ न
तिलमिलाती प्यास बूझाओ न
ये बादल थोड़ा मुस्कुराओ न
श्रावण की दस्तूरी में,
झिलमिलाते बूदें लाओ न
मौसम खिला हैं, बरसात आओ न
द्वंद छेड़ आसमां में,
टप-टप बूदें बरसाओ न
पलकों तले दबाये आंसू,
धीरे-धीरे बहाओ न
आशा बसे संसार में,
विश्वास अपना बनाओ न
ये बादल थोड़ा मुस्कुराओ न
श्रावण की दस्तूरी में,
झिलमिलाते बूदें लाओ न
मौसम खिला हैं, बरसात आओ न
ये पवन के झोकों,
बादलों को दिखाओ न
बेचेनी में जी रहा इंसान,
उनकी तलब पहचानाओ न
मौसम बदल आसमान की,
खुद की पहचान बनाओ न
ये बादल थोड़ा मुस्कुराओ न
श्रावण की दस्तूरी में,
झिलमिलाते बूदें लाओ न
मौसम खिला हैं, बरसात आओ न. !
स्वरचित
‘शेखर सागर’