मौसम कितना सुहाना है (2)
रिमझिम-रिमझिम सावन बरसे,मस्ती का ये खज़ाना है।
आओ भीगें हमतुम मिलके,मौसम कितना सुहाना है।।
ठण्डी-ठण्डी चलती पवनें,तन-मन को गुदगुदाती हैं।
बादल गरजें बिजली चमकें,कितना हमकों डराती हैं।
हम तो हैं हिम्मत वाले पर,सबको हमने बताना है।
आओ भीगें हमतुम मिलके,मौसम कितना सुहाना है।।
काले-काले बादल छाए,चारों ओर अँधियारा है।
जुगनू जैसी आँखें करलें,कितना सुंदर नज़ारा है।
नाचें गाएँ झूमें दोनों,मोहब्बत का ठिकाना है।
आओ भीगें हमतुम मिलके,मौसम कितना सुहाना है।।
छाता छोड़ो नैना जोड़ो,इक-दूजे में समाते हैं।
बादल-बिजली के जैसे हम,खुद को आओ बनाते हैं।
सावन बनके हम भी बरसें,मौज़ों का अब बहाना है।
आओ भीगें हमतुम मिलके,मौसम कितना सुहाना है।।
रिमझिम-रिमझिम सावन बरसे,मस्ती का ये खज़ाना है।
आओ भीगें हमतुम मिलके,मौसम कितना सुहाना है।।
आर.एस.प्रीतम
——————-
सर्वाधिकार सुरक्षित–radheys581@gmail.com