मौसम का क्या मिजाज है मत पूछिए जनाब।
मौसम का क्या मिजाज है मत पूछिए जनाब।
ठंडक से छुप गया है कहीं जाके आफताब।
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कंबल रजाई ओढ़ के लेटे हैं अभी तक।
दुबके पड़े है बचपना पीरी हो या शबाब।
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दिखता नहीं है सामने कुछ सूझता नहीं।
कोहरा बरस रहा है सड़क पर भी बेहिसाब।
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ठंडी बचा न पाएगा अब कोई अलाव।
सिंक सिंक के हुए जा रहे हैं अब सभी कबाब।
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अब हाथ पैर सुन्न हैं,और कंपकपाते होंट।
कैसे पढ़े भी कोई मुहब्बत की अब किताब।
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बर्ग,गुल,शाख, शजर लगते बर्फ से।
बेला,गुलाब,चंपा चमेली हो या गुलाब।
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सर्दी का है असर की अजी नाक बह रही।
मुंह को छुपा लो यार लगा लो कोई हिजाब।
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कैसे लिखें ग़ज़ल कोई या शेरो शायरी।
सिकुड़ी हुई क़लम भी है,ठिठरी है माहताब।
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कितनी नसीहतें मिली कितनी फजी़हतें।
लेटे लिहाफ ओढ़ “सगी़र” नेकी और सवाब।