मौसमों की माफ़िक़ लोग
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साग़र-ओ-मीना-ओ-गुल, मेरेे रूहानी शौक़ तो देखिए
पाँवों में परहेज़ों की बेड़ी और रूमानी ख़्वाब देखिए।
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नीम-बाज़-आँखें मिरी, और नीम-बाज़-रुख़सार उनके,
फिर भी दरम्यां हमारे, ताज़िंदगी रिश्ता शादाब देखिए।
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जो हमसे मिलने आया करते थे, कोसों दूर से कभी,
आज उनका फ़ासले से लहज़ा-ए-दुआ-आदाब देखिए।
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कैसे बदल लेते हैं लोग, मौसमों की माफ़िक़ ख़ुद को,
असर, शोहरतो-दौलतो-मिल्कियत का जनाब देखिए।
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चलो मुद्दा-ए-ग़ज़ल बदलते हैं, कल कुछ ताज़ा लिखेंगे,
अपना गिरेबां हम झांकें, अपने गिरेबां में आप देखिए।