मौलिकता
“मौलिकता”
जब हमारी ज़िंदगी, मूलतया मौलिक होती है, व मानव की मूल प्रकृति, स्वाभाविक होती है
तो भला क्यों रहे अभाव मौलिकता का,जहाँ, आप की अपनी अभिव्यक्ति की बात होती है
माना कि दूसरों की पंक्तियों में, मुझे मैं दिखाई देता हूँ, और मन ही मन उनकी अभिव्यक्ति से प्रेरणा लेता हूँ
परंतु क्या ये विचार नहीं आया कभी मेरे मन में कि, मैं, अपनी अभिव्यक्ति से किस जन्म का प्रतिशोध लेता हूँ
मित्र हूँ, मित्रता है अभिन्न अंग मेरी मूल प्रकृति का, मित्रों की मूल अभिव्यक्ति रही है प्रेरणास्त्रोत मेरी जागृति का
परंतु यह जानना भी हमारे लिये अत्यंत आवश्यक है, हमारा मूल स्वरूप ही कारण रहा है इस सुंदर आकृति का
थोड़ी कही को बहुत जान, तुम चित्र बनो या इत्र बनो, करो सुगंधित जल थल नभ को या मनमोहक चलचित्र बनो
मित्र होने के नाते, स्मरण करवाना, मेरा कर्तव्य है, तुम अपनी भावनाएँ भी व्यक्त करो, अपने भी सच्चे मित्र बनो
~ नितिन जोधपुरी “छीण”