मौन
मौन हो आये हैं आशिक आज बाते करने को
आँखों से वो कह रहे हैं साथ जीने मरने को
इक दफा फिर दिल हुआ खुश तू जो मेरे संग है
राहत की हर गहराइयों में घुल रहा तेरा रंग है
मेरी दुआ के राज में तू आके कुछ यूँ छुप गया है
राही था अबतक ज़िन्दगी में, तुझमे जो अब रुक गया है
आँचल तेरा हो और मेरा हाथ खुशियाँ भरनें को
मौन हो आयें हैं आशिक आज बातें करने को
आज बैठे हो जो मेरी बाह में तुम सिर टिकाकर
साथ जाहिर कर रहें हैं चाँद तारे झिलमिलाकर
आँखों से नींदें चुराकर, आओ हम नजरें मिलायें
इक दूसरे के ख्वाब में हम डूबकर कुछ दूर जायें
चाहत है तेरे नाम जीवन आज अपना करने को
मौन हो आयें हैं आशिक आज बातें करने को
– कैलाश सिंह
सतना (मध्य प्रदेश)