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16 Feb 2024 · 1 min read

मौन हूं निशब्द नहीं

मौन हूं निशब्द नहीं,
आवाज है बस बोलती नहीं।

जिंदगी की ठोकरें खाती रहती हूं,
फिर भी मुस्कुराना छोड़ती नहीं।

दिल में गमों का बोझ है,
पर आंखों से आंसू गिराती नहीं।

तकलीफों से डरती नहीं,

हिम्मत की डोर छोड़ती नहीं।

सांसों में दबी है चीख,
जो होठों से बस निकलती नहीं।

चुप हूं बेजान नहीं,
मेरे सीने में भी धड़कता है दिल।

ख़ामोश हूं मिटी नहीं,
मेरे अंदर भी है जज़्बा और जुनून।

शब्दों में छिपा है दर्द,
जो ज़बान से बयां होते नहीं।

भावों का समंदर है हृदय में,
किन्तु तरंगे उठती नहीं।

दिल की किताब खुली है सबके लिए,
पर कोई पढ़ने आता नहीं।

आँसुओं से भरी हूं, पर बहती नहीं,
सब सहती हूं, मगर मुँह से कहती नहीं।

जीवन की मार है मुझ पर हर पल,
पर मैं डगमगाती नहीं, टूटती नहीं।

कठिनाइयों से भरी हैं राहें मेरी,
पर मैं हिम्मत हारती नहीं, रुख मोड़ती नहीं।

दुखों के सागर में भी डूबती नहीं,
पर खुशियों की किरण से आँखें मूंदती नहीं।

आशा की डोर थामे रहती हूं मैं,
निराशा की आँधी में कभी झुकती नहीं।

टूटे हुए शीशों की तरह हूं मै,
पर टुकड़ों में भी चमकती हूं।

दर्द के काँटों को भी गले लगाती हूं,
पर जिंदगी के फूलों को भी महकाती हूं।

मैं स्त्री हूं, शक्ति हूं, अनंत हूं,
हर मुश्किल का सामना करूंगी, हर जंग जीतूंगी।

– सुमन मीना (अदिति)

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