मौन हूँ मै
जिंदगी के इस खेल में,
कुछ मौन हूँ मै ।
बहुत समझा जिंदगी को,
ढूंढता हूँ इस पल,
अब कौन कौन हूँ मै ।
तरह – तरह के सितम,
खाये हैं मैंने ।
सहें हैं पीठ पर,
खंजर थे वो पैने ।
अब नहीं है भरोसा,
इस महफ़िल में किसी पर ।
महफूज नहीं है,
कोई भी ठिकाना,
अब कोई भी घर ।
किसी की गोद में,
रख के सर,
काश कुछ सो लूँ मै ।
ओढ़ के आँचल किसी का,
जी भर रो लूँ मै ।
किसी के कंधे पर,
दाल के हाँथ,
काश मै भी झूल जाऊं ।
मिले सहारा जो,
किसी अपने का,
तो मै भी सब भूल जाऊं ।
पर कंहा नसीब में मेरे,
ये सब तो,
कोरी ख्वाहिशे हैं ।
इस दुनिया में असली क्या,
यंहा तो बस,
धोखा और नुमाइशें हैं ।
सोंचता हूँ अब,
क्या हैं मेरा और,
किसका कौन हूँ मै ।
न मिला कुछ उत्तर,
तो मायूस होकर,
सिर्फ मौन हूँ मै ।