मौन से बेहतर है शोर
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अपना कान ही नहीं,
मन भी पक गया है,
महानगर के शोर से।
बोलते-बोलते खुद ही,
चिखने लगे हैं जोर से।
सड़कों पर हर किस्म के वाहन,
पैदल पथ पर भी स्कूटरों का आवागमन।
उम्मीद से अधिक आबादी,
हर चीजों में मारामारी।
वाहनों की भीड़ और शोर,
ट्रेफिक में रूकावट और क्रोध।
बस छुट्टी के दिन अपेक्षाकृत मन शान्त है,
आज बड़े दिनों के बाद मिला थोड़ा एकान्त है।
अचानक एहसास हुआ कि चुप्पी खतरनाक है ,
शोर तो नाहक बदनाम है ।
शोर तो जीवन्त सदाचार है।
मौन छिपा करप्शन का विचार है।
आतंकी साजिशें ढोल बजाकर नहीं
चुपचाप रची जाती हैं।
मिलावट का मीना बाजार मौन चुपचाप चलती है।
संस्था और सरकार में सक्रिय है
खामोशी से सौदेबाजी।
हर जगह चुपचाप कमीशन और घूसखोरी।
फुसफुसाहट हुई कि जुबा पर धन का नियंत्रण।
फिर कुछ और भ्रष्टाचार को निमंत्रण।
लोग कहते हैं कि पैसा बोलता है।
हमें तो लगता है कि –
पैसा सभी के मुँह पर ताला जड़ता है।
अगर शोर नहीं होता तो,
कवि कैसे सन्नाटे पर छंद बुनता?
इस गुपचुप लेन देन के जमाने में
तरक्की का तराना गुंजता।
मौन से बेहतर है शोर
अब शोर सुनकर नहीं होती मैं बोर।
आज अचानक ये शोर,
कर रहा है मुझे भाव विभोर।
जो कि निकला है
खामोशी को तोड़।
? ? ? – लक्ष्मी सिंह ? ☺