मौन- मौन
मौन -मौन
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मौन मौन,
अब तो बोलो।
कुछ हल्के रह गये
शब्द,
थोड़ा वज़न डालो
इनमें,
ज़रा अब तोलो।
नहीं ,वही कुछ भाव भरो;
अब बोलो,
मौन मौन—–!
राजेश “ललित”
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मौन
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मौन क्यूँ है?
क्यूँ तू
अब भी चुप है!
कोहरा है,धुंध है,
अंधकार घना घुप है।
बैठा है ,सहता है
सदियों से;
बहुत हुआ अब,
चिल्लाओ
कि ब्रह्मांड भी
थर्रा जाये;
आयें रश्मियाँ
चीर कर,
सब अंधकार प्रकाशित
कर जाओ
मौन ,मौन ;चिल्लाओ।।
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राजेश’ललित’
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हे रे मौन!
क्या साध रहे,
साधक बन ।
तप रहे,
तपस्वी बन ।
नि:शब्द हो,
फिर भी
सशक्त हो।
मौन बने तो
फिर क्या कहना?
ताउम्र जब सहना ;
है सिर्फ़ सहना।
निश्चित ही
मौन कब बोलता ;
तौलता सिर्फ़ तौलता।
उर्जा संचित करता,
पर्वत बनता;
नहीं कोई जड़ता;
तैयार रहना
विस्फोट बस होने को है
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राजेश’ललित’
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मौन पर लिखी विभिन्न मन:स्थितियों पर आधारित यह श्रंखलाबद्ध कविता है।पाठक पढ़ें और टिप्पणी भी करें।
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राजेश”ललित”
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