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25 Oct 2019 · 1 min read

मौन थी वो

कौन थी वो
सब कुछ जान कर भी
मौन थी वो
प्यार जताना भी नहीं
चाहती थीं वो
चाह कर भी प्रेम छिपाना नहीं
जानती थी वो
कसूर कातिल मयकशी
नजरों का था या फिर
दिल की धड़कनों का
जो धड़कती थी बेहद तीव्र
समुद्री तूफान सी गति से
बढा देती थी टिका हुआ
लाल लहू रूधिरवाहिनी
का रक्तचाप अकस्मात
जब आ टपकती थी
नजरों के समक्ष
बलखाती पतली कमरिया
मटकाती हुई
घुँघरू सी खनकती
हँसी से मोतियों सी
कतारबद्ध दाँतों की
बत्तीसी दिखाती हुई
और फिर भाग जाती
जिह्वा को दिखाते और
दाँतों तले होठों को दबाते हुए
मंद मंद मद्धिम मद्धिम
मधुर मुस्कान बिखेरती
और मैं असहाय स्थिर सा
बुत समान रह जाता खड़ा
निज आँचल में झोली फैलाए
समेटेने.के लिए प्रेयसी की
बिखरी हुई मधुमयी सी
मुस्कराहट के विखण्डों को

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
189 Views
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