*मौन की चुभन*
मौन की चुभन
मौन की चुभन सही नहीं जाए,
कुछ तो बोलो ओ प्रीतम की,
मन भर जाए।
आपस में मिलकर करते हैं बातें
ना जाने समस्याओं का
हल निकल जाए।
गिले शिकवे भर दो मेरी झोली में,
मौन की चुभन सही नहीं जाए।
अंतर मन के कोने भी रो पड़े हैं,
कुछ तो बोलो कि
मन मेरा बहल जाए।
शब्दों को मेरे सीने पर उकेर दो,
मौन की गठरी अब तो खोल दो,
बारिश जैसे बरस पड़ो अब मुझ पर
बादलों की गड़गड़ाहट सा
गरजो मुझ पर क्योंकि
मौन की चुभन सही नहीं जाए।
मौन की चुभन सही नहीं जाए।
रचनाकार
कृष्णा मानसी
(मंजू लता मेरसा)
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)