मौन आमंत्रण
जब तुम कहते हो चुपके से
कानों में रस घुल जाता………….
प्रीति की मद भरी आंखों में
और शरारत गहरा जाता……….
तुम कुछ नहीं बोलती
किंतु तुम्हारा मौन बोलता …………
आंखों की मदहोश शोखियां
फिर कितना मुझे सताता है……….!
जी चाहे बाहों में भर लूं
चांद तारों की छांव तले …………..
दूर गगन में चमक रहे
ऐसी अपनी प्रीत अमर रहे………..
आओ चले दरिया के किनारे
धीरे से निहारे अपनी छवि…………
दरिया के दामन में पसरे
चांद सितारों का अद्भुत मिलन……….!
नहीं छेड़ना तुम उनको
कहने दो मन के जज्बात …………..
सुनो! हमारा मूक निवेदन
अपनी भी हो प्यार भरी रात………..
चुपके से मन के भावों को
अपने अधरों से सहलाना …………….
खेल रहे धरती के आंगन
प्रकृति का और उन्मुक्त होना …………..!
झुक जाती खामोश यह पलकें
अलकों को सहला जाती……………
जीत हमारी अमर है सच्ची
गिले-शिकवे झुठला जाती……….
बैठ हरसिंगार की छांव तले
कितने सारे स्वप्न बुने ……………….
रजनी के आंचल में फिर
प्रेम मधुर मुस्काता है……………..!
मौन पसर सा जाता है ……………….!!