मौत
रफ़्ता रफ़्ता दबे पांव बिना आहट के ,
मौत कुछ इस तरह ज़िंदगी से मिलती है I
ये हंसी ख्वाब दिखाकर छलती सबको ,
मेरे आग़ोश में एक मीठी नींद पलती है II
मुस्कराती हुई बढ़ती है अन्धेरों की तरफ ,
अपने चेहरे पे बिछाके उदासी की परत ,
ख़ौफ़ के सायों से उम्र भर भिड़ती हुई ,
चाहत में उजालों के रात मिटती है II
एक अन्जान सी उसकी तन्हा राहों में ,
बेइंतिहा सुकूं उसकी हसीं बाँहों में ,
एक ख़ामोशी की चादर लपेटे तन पे ,
लवों पे मुस्कान सजी दिखती है II
कभी ख़ुशी कभी ग़मगीं नग़्मे गाके ,
कभी उम्र के आखरी पड़ाव पे आके ,
एक लम्बे सफ़र के बाद खो के ज़िंदगानी ,
मौत की हसीं बांहों में जगह मिलती है II