“मौत हमसे हारेगी”
मौत हमसे हारेगी…
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मौत हमसे हारेगी,
है भरोसा अपने मन पे,
मौत हमसे हारेगी,
सत्य खातिर प्राण दूँगा,
मौत हमसे हारेगी।
है इरादा इस जहाँ का,
आसरा बेहतर बनाऊँ,
पार कर हर अड़चनों को
चाँद- तारे तोड़ लाऊँ।
नाश हो भय का थपेड़ा,
मौत हमसे हारेगी।
सत्य खातिर प्राण दूँगा,
मौत हमसे हारेगी…
झूठ में कितनी घुटन है,
हर किसी को है पता,
इस जमीं से आसमाँ तक,
रहे ना इसका नामोनिशाँ।
नेक वादे, पाक कदमों,
से वतन खुशहाल हो,
हो इजाफा अमन सुख में,
स्वर्ग सा संसार हो।
अपने वीरों की कहानी,
फिर से धरा दोहराएगी,
सत्य खातिर प्राण दूँगा,
मौत हमसे हारेगी…
बीते लम्हों से गिला है,
आह, न तुझको पड़ी,
सच का मतलब जानने में,
क्यों हुई इतनी देरी।
क्यों नहीं मैं जान पाया,
काल की मंथर गति।
क्यों नहीं मैं समझ पाया,
साकार की अंतर्वृत्ति।
मोह अब कर लो किनारा,
जिंदगी अब गायेगी।
सत्य खातिर प्राण दूँगा,
मौत हमसे हारेगी…
लहरें कई बार आएंगी जाएंगी,
फिर सागर सा शांत होगा मन,
फासला होगा न उनसे,
अभिज्ञान पथ इठलाएगी।
घोर विपत्ति भी आएगी तो,
मन में न होगा कोई अंतर्द्वंद्व।
सत्य फिर साकार होगा,
शून्य भी विराट होगा,
सामना होगा जो खुद से,
मन, खुद पे ही इतराएगी।
सत्य खातिर प्राण दूँगा,
मौत हमसे हारेगी…
(ये काव्य रचना सन् 2004 ईस्वी में जब हम मरणासन्न अवस्था में थे तब लिखी गई थी, मेरे मन में ऐसा भाव आया था कि बिना ब्रह्मतत्व को प्राप्त किए , बिना सत्य को समझे तथा सत्य की रक्षा के लिए अपने उदेश्य में सफल हुए बिना हम मृत्यु को प्राप्त नहीं हो सकते।
मेरा यह मानना है कि सत्य का दर्शन कर लेने एवं सत्य में विलीन हो जाने से मनुष्य को जीवन – मरण की श्रृंखला से मुक्ति मिल जाती है और इस प्रकार मौत पर विजय पाई जा सकती है।
धन्यवाद!)
मौलिक एवं स्वरचित
© *मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २७/०६/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201