मौत , सुहाना सफर
है जिन्दगी से
मौत सुहानी
न रूठने का
गम
न मनाने का
झंझट
मुकाम तलक
पहुंचाने
चार ही चाहिए
नहीं है
शौक हमें
भीड़ बढ़ाने का
बड़ा सुकून
देती है मौत
न गरमी की
चुभन
न सरदी की
ठुठरन
बस करता हूँ
मैं इबादत
मौला की
चिंता नहीं मुझे
दुनियां की
रहना चाहता हूँ
मैं
बन कर फकीर
शानौ-शौकत की
नहीं चाह मुझे
यूँ तो
हजार हैं
मयखाने में
हमें तो
मतलब है
अपने
पैमाने से
खुला रखना
चाहता हूँ
हर पन्ना
मैं किताब का
कर सके
मुआयना
हर कोई अपना
अपने में मस्त
रहता है
“संतोष”
बहुत नहीं
बस रखता है
दोस्ती मौत से
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल