मौत भी लेकर कलण्डर आ गई
आन की जब बात लब़ पर आ गई
म्यान से तलवार बाहर आ गई
जिस्म से बेज़ार दुलहन रुह की
छोड़कर ससुराल पीहर आ गई
वो सजी सँवरी चली परयाग को
पर इलाहाबाद रहकर आ गई
यूँ जमाने ने रुलाया था उसे
वो मिरी बाँहों में हँसकर आ गई
ज़िन्दगी से चार, आँखें जब हुईं
मौत भी लेकर कलण्डर आ गई
छू लिया तूने ग़ज़ल जब से मुझे
पास में अपने भी पावर आ गई