मौत पर लिखे अश’आर
ज़िंदगी से निभा के बस चलिए ।
मौत देती निजात थोड़ी है ।।
भूल तू कभी न जाना
ज़िंदगी की चाहत में ।
ज़िंदगी के हिस्से में
मौत भी तो आती है ।।
काश़ वक़्त का कोई
लम्हा कमाल हो ।
न मौत का हो डर
न ज़िंदगी का सवाल हो ।।
मायने मौत के नहीं कुछ भी ।
आज भी ज़िंदगी से डरते हैं ।।
मौत को छू के हमनें जाना है ।
ज़िंदगी तेरी क्या हक़ीक़त है ।।
दर्द-ए-शिद्दत से फिर गुज़रती है ।
ज़िंदगी मौत से जब मिलती है ।।
जानता है वही जो इस दर्द से
गुज़रता है ।
एक ज़िंदगी में कोई कितनी
मौत मरता है ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद