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5 Feb 2024 · 1 min read

मौत नर्तन कर रही सर पर मेरे….

सत्य की राहों पे गिरती बिजलियोंँ को
देखकर आती नई मधुमास गाओ।
मौत नर्तन कर रही सर पर मेरे।
और तुम कहते हो मधुरिम गान गाओ।

पुण्य कर्मों का ये देखो फल यहांँ।
झूठ भारी पर रहा है सांँच पर।
सत्य पंथों का पथिक होने का मतलब
ले चलो खुद को धधकते आंँच पर।
मैं विकट वहशी सी अग्नि कुंड में
जल रहा हूंँ वो कहे पुंँजवान गाओ।
मौत नर्तन कर रही सर पर मेरे।
और तुम कहते हो मधुरिम गान गाओ।

द्वंद है विस्मय समेटे वक्ष में।
मौत से डरकर भला क्या सत्य छोडूंँ?
वन में चंदन है महकता वृंद उपवन।
है ग़लत क्या अंग अंग भुजंग तोडूंँ?
सर्प को कैसे पिलाऊँ दूध मैं
क्या सही है मृत्यु को सर पर चढ़ाओ?
मौत नर्तन कर रही सर पर मेरे।
और तुम कहते हो मधुरिम गान गाओ।

मैं हूंँ “दिनकर” सा “निखर”हर काल में
बनके चंदर या “कलश”आ जाऊंँगा।
हां कभी श्रीकृष्ण के उपदेश सा
कुरुक्षेत्र के कण कण में बसता जाऊंँगा।
तुम मेरे इस पृष्ठ भूमि को भले।
जल के ऊपर छाप कह उपहास गाओ!
मौत नर्तन कर रही सर पर मेरे।
और तुम कहते हो मधुरिम गान गाओ।

©®दीपक झा “रुद्रा”

Language: Hindi
125 Views

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