मौत को गले लगाते हुए
एक कतरा ना बचा तन का साथियों
इस वतन की जमीं को बचाते हुए
याद रखना हमें तुस से है ये इल्तिजा
कह रही है यही आखिरी सांस जाते हुए
रोज जीते हैं हम,रोज मरते यहाँ
मौत से भी भला हम देखो डरते कहाँ
अपने आंचल में हमको सुलाती है माँ
ऐसी माँ के लिए छोड़कर चले हम जहाँ
चैन हमको मिले ये करना दुआ साथियों
प्यार से अपनी माँ के गोद में समाते हुए
याद रखना…………
कह रही………….
जान हथेली पर लिए हम तो चले आसमां
हर घड़ी याद आते हो तुम हमें मेहरबां
मिट गए वक्त की रेत पर अब सारे निशां
रुह बनके सदा हम करेंगे खुद को बयां
मर के भी जो हिफाजत की रहेगी सदा साथियों
आंख में ना हो आंसू फर्ज निभाते हुए
याद रखना……………….
कह रही……………..
मौत से भी मोहब्बत निभायेंगे हम जालिमां
हमारे लहू से लहरायेगी फिर नयी फसल जवां
यूहीं मुस्कुराता रहे इस सरजमीं का बागबां
अब तो चलते हैं लेकर हम मौत का कारवां
इन हंसी वादियों को नजर ना लगे साथियों
चाहे आ जाए कोई भी कहर गिराते हुए
याद रखना………….
कह रही……………..
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.