मौत के आईने से
शीर्षक – मौत के आईनें से !
विधा- व्यंग्य कविता
परिचय- ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु. पो. रघुनाथगढ़ सीकर,राजस्थान।
मो. 9001321438
शत शत नमन,शत शत नमन।
स्वार्थों के अभिवादन है तो कहीं!
हृदय की प्रसन्नता से शांत और
मगरमच्छ के आँसू से अभिवादन
मरते ही सौ वर्ष का जीवन हो गया।
अफसोस! तो प्रकट शत्रु भी कर रहे
पर खुशी का प्रकट अवसर समाप्त…
जो मरा वो राजनेता था या कोई….
सब कोई जानते चहरें की सच्चाई
गुप्त होने पर भी प्रकट थे,अफसोस!
आज संवेदना प्रकट मैं नहीं करूँगा
अभी तो जंग का ऐलान बाकी था
मरते ही समाप्त कहाँ हुई शत्रुता
अभी चरम पर होगी भावना
हैं मंगल भाव अभी सुसुप्त
चेहरों ने लूटी पर्दे पीछे अस्मत
मरने से राज दफन हमेशा नहीं
जिंदा कमजोर गवाह योद्धा होगें
कलम का बाकी इतिहास में नाचना
चेहरे की क्रूरता देवमूर्ति नहीं।
मौत के आईनें से भड़केगी ज्वाला
कर्मकाण्ड पंडित नहीं मैं बाचूँगा
जारी रहेगी शत्रुता इन भेड़ियों से
अश्लीलता के पुजारी देव कैसे !
परिचित या रिश्तेदार वो नहीं मेरा
समाज की हत्या करने वाला
मानव जगत में पूज्य कैसे….!
धन्यवाद! ईश्वर तुमने उठाया उसे
इल्जाम कलम पर आ जाता
ऐसे हर नेता मरें और कलम नाचें।